“नमाज़े”

तू ईत्र-ऐ-ईबादत
तू रहेमत-ऐ-कुर्बत
 जब भी तेरी यादे
मेरे जहन में चली आती है।
सच कहेता हूँ,
अल्हा कसम
नमाज़े अदा हो जाती हैं।
तू नज़्म है, या कोई सिरफिरी शायरी।
कोई कलमा तू,या सिर्फ मेरी बेफिक्री।
भरकर हया आँखों मे जब भी तू मुस्काती है।
सच कहेता हूँ,
अल्हा कसम…
नमाज़े अदा हो जाती हैं।
तू अव्वल हसरत-ऐ-रूमानी..
तू जैसे दरगाह का पाक पानी।
जो तू अपनी नाजुक उंगलियों से
उलझी जुल्फ़े सुल्ज़ाती है।
सच कहेता हूँ,
अल्हा कसम..
नमाज़े अदा हो जाती है।
तू सजदा मेरा, तू दीवानगी..
तू मोहब्बत, तुहि सादगी..।
जब भी तेरी आँखों मे,
ज़न्नत की बरसातें समाती है।
सच कहेता हूँ,
अल्हा कसम…
मेरे होठों से
तेरे ईबादत में..
नमाज़े अदा हो जाती है।
Written by - अथर्व | Location: Pune | Language: उर्दू

Started in 2009 as a collective and now as Mist LGBTQ Foundation, Mist aims at empowering the LGBTQ+ community & promotes safe love by changing mindset through awareness.

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